स्वर्णिम भारत के निर्माण में शिक्षक की भूमिका कार्यशाला का किया आयोजन

ऋषिकेश ( राव शहजाद ) । प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा “स्वर्णिम भारत के निर्माण में शिक्षक की भूमिका” विषय पर एक प्रेरणादायी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ मुख्य अतिथि श्री वी.के. धोडियाल (जिला शिक्षा अधिकारी, देहरादून) एवं विशिष्ट अतिथि राजेन्द्र कुमार पांडेय (पूर्व प्राधानाचार्य एवं निदेशक, राज चिल्ड्रेन अकादमी, जिला अध्यक्ष – विश्व हिंदू परिषद) की गरिमामयी उपस्थिति में हुआ।रविवार को आयोजित कार्यक्रम में ऋषिकेश केंद्र की मुख्य संचालिका राजयोगिनी बीके आरती दीदी ने ॐ की ध्वनि व मेडिटेशन द्वारा लोगो को शान्ति की अनुभूति करवाई। उन्होंने बताया कि शिक्षक समाज के निर्माणकर्ता होते हैं और उनके नैतिक मूल्यों से ही राष्ट्र का भविष्य आकार लेता है। बच्चों के पहले शिक्षक उनके माता-पिता होते हैं। शिक्षा हमें सिखाती है कि कैसे सभी का सम्मान किया जाए और जीवन को मूल्य आधारित बनाया जाए, लेकिन बच्चों को कुछ सिखाने से पहले, हमें स्वयं उन गुणों को अपने जीवन में अपनाना होगा। शुद्ध आचरण का प्रभाव बच्चों पर गहराई से पड़ता है । बच्चों को नशे से दूर रखने के लिए हमें भी अपने जीवन से उन दुर्गुणों को निकालना होगा जब हमारे संस्कार दिव्य और शुद्ध होंगे, तब ही हम बच्चों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सकेंगे क्योकि स्वयं का परिवर्तन ही विश्व परिवर्तन का आधार है। पूर्व में लोगों मे दिव्यता, सच्चा प्रेम, स्वच्छता और अंतर्मुखता थी व जीवन विकारों से रहित था, इसीलिए उन्हें देवता कहा जाता था। हमारे सर्वोच्च शिक्षक शिव बाबा कहते हैं अब अपने संस्कारों को दिव्य बनाओ, व स्वयं ‘देने वाला देवता’ बनो। यहां ज्ञान, पवित्रता, प्रेम, शांति, सुख, आनन्द व शक्ति के गुणो को लाने व मन को सकारात्मक बनाने के लिए आध्यात्मिक पढा़ई करायी जाती है, यदि खुशी चाहिये तो दूसरो की गल्ती को क्षमा करना व स्वम की गल्ती पर क्षमा मागे तो जीवन मे सुख शान्ति बनी रहेगी। वही मुख्य अतिथि वी.के. धोडियाल ने कहा शिक्षक वह मार्गदर्शक होता है जो अपने विद्यार्थी की गलतियों को क्षमा कर, उसकी कमियों को दूर कर उसे जीवन के शिखर तक पहुंचाने का कार्य करता है।”उन्होंने कहा कि यह दुर्लभ मानव शरीर पाँच तत्वों से बना है, जबकि आत्मा सात गुणों से सुसज्जित होती है। ऐसे में शिक्षकों का यह कर्तव्य बनता है कि वे विद्यार्थियों को केवल संस्कार ही नहीं, बल्कि आत्मिक गुणों से भी परिपूर्ण करें। चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अधिकांश अभिभावक सभी निशुल्क सुविधाओं को छोड़कर, केवल अंग्रेज़ी सिखाने की होड़ में महंगे पब्लिक स्कूलों की ओर भाग रहे हैं, जबकि हिंदी हमारी प्राचीन एवं मुख्य भाषा है, जो जीवन को संस्कारी बनाती है।” इसके साथ ही उन्होंने ईश्वर द्वारा संचालित इस विशिष्ट विश्वविद्यालय की सराहना करते हुए कहा की मैं आज इस ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आकर अभिभूत हूँ, जहाँ केवल साधारण पढ़ाई नहीं, बल्कि ‘नर से नारायण’ और ‘नारी से लक्ष्मी’ बनाने की शिक्षा दी जाती है।” अंत में उन्होंने भावुक होते हुए कहा मैं भी जल्द ही यहाँ प्रवेश लेकर यह अलौकिक शिक्षा प्राप्त करना चाहूँगा। राजेंद्र पांडे ने कहा शिक्षकों से आग्रह किया कि वे बच्चों में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का संचार करे, भारत को कमजोर करने वाली सनातन विरोधी शक्तिया हैं, परंतु भारत शीघ्र ही पुनः विश्व गुरु बनेगा। वही राजीव खत्री ने कहा कि शिक्षक समाज की धुरी हैं।
वर्तमान समय में संस्कारों को प्रदान करने की नैतिक जिम्मेदारी अब शिक्षको पर आ गई है, क्योंकि परिवार संयुक्त से एकल हो गए हैं। बच्चे विद्यालय से लौटकर सीधे ट्यूशन क्लास के लिए चले जाते हैं और अधिक समय शिक्षक के संपर्क में रहते हैं। इसलिए आज शिक्षक न केवल ज्ञान देने वाले, बल्कि समाज को संस्कारित करने वाले प्रमुख स्तंभ बन गए है। इस अवसर पर 25 से अधिक प्राधानाचार्यो एवं शिक्षकगणों को संस्था द्वारा सम्मानित किया गया। मौके पर राजीव खत्री , मनोज राणा , राजेश शर्मा अन्य उपस्थित रहे।