स्वाभिमान महारैली में उमड़ा जनसैलाब , मूल निवास सशक्त भू कानून रही मुख्य मांग
ऋषिकेश ( राव शहजाद ) । मूल निवास 1950, सशक्त भू कानून, बढ़ते नशे और अपराध के खिलाफ ऋषिकेश क्षेत्र के साथ ही पहाड़ व मैदानी क्षेत्र के लोग हजारों की संख्या में ऋषिकेश के आईडीपीएल स्थित फुटबॉल मैदान में एकत्रित हुए है । तथा वहां से मूल निवास भू कानून समन्वयक संघर्ष समिति उत्तराखंड के संयोजक मोहित डिमरी के नेतृत्व आईडीपीएल स्थित फुटबॉल मैदान से त्रिवेणी घाट के गांधी स्तंभ तक हाथों में तखतियां लेकर व नारेबाजी कर मूल निवास स्वाभिमान महारैली निकाली है । बता दे मूल निवास स्वाभिमान महारैली में युवाओं, बालिकाओं, महिलाओं, बच्चे व बुजुर्गों जैन सैलाब उमड़ पड़ा। लग रहा है कि लोगों के इस जन सैलाब को देखकर सरकार जरूर हिल गई होगी । लोगों ने हाथ में तखतियां लेकर नारेबाजी करते हुए कहा कि मूल निवास 1950, सशक्त भू कानून हमारा अधिकार है जब तक सरकार इसे हमें नहीं देती है वह चुप नहीं बैठेंगे। स्वाभिमान महारैली में बोल पहाड़ी हल्ला बोल, तुम हमसे क्या जीतोगे सहित कई नारे गूंज रहे थे। आईडीपीएल के फुटबॉल मैदान और त्रिवेणी घाट स्थित गांधी स्तंभ पर हुई जनसभा को संबोधित करते हुए मूल निवास भू कानून समन्वयक संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि सरकार ने आज की मूल निवास स्वाभिमान महा रैली को देखते हुए हमें केवल एक जुमला दिया है कि वह जल्द ही सशक्त भू कानून लागू करेगा उन्होंने कहा कि आज अपने ही राज्य में मूल निवासियों की पहचान का संकट खड़ा हो गया है। कहा कि अब हमारे अपने ही प्रदेश में कोई हैसियत नहीं रह गई है। हमारी पहचान के साथ ही हमारी संस्कृति, नौकरी, रोजगार, जमीन सहित तमाम आर्थिक संसाधनों पर बाहर से आए लोगों का कब्जा होता जा रहा है।

इसके पीछे मुख्य कारण मूल निवास 1950 की व्यवस्था को खत्म करना और कमजोर भू कानून लागू होना है। कहा कि एक आंकड़े के मुताबिक आज उत्तराखंड में भारी राज्यों से 50 लाख से अधिक लोग आ चुके हैं। इसमें से अधिकतर ऐसे हैं जिन्होंने अपने फर्जी स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनाए हैं। इस आधार पर यह लोग न केवल उत्तराखंड में सरकारी नौकरी कर रहे हैं बल्कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठा रहे हैं और आसानी से जमीन भी खरीद रहे हैं। हमारे रोजगार और कारोबार के अवसरों को हथियाना के साथ ही प्रदेश के तमाम तरह के संसाधनों पर भी इनकी पकड़ दिनों दिन मजबूत होती जा रही है। इस खतरनाक स्थिति को नजर अंदाज करने का सीधा मतलब है कि हमारी भावी पीढ़ी के अल्पसंख्यक हो जाने का रास्ता तैयार करना है। क्या यह हमें मंजूर होना चाहिए, बिल्कुल भी नहीं। उन्होंने कहा कि समिति लंबे समय से मांग करती आ रही है कि मूल निवासियों का मूल निवास 1950 के आधार पर चिह्नीकरण/सर्वे किया जाए, इस आधार पर मूल निवासियों को सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की नौकरियों, रोजगार व सरकारी योजनाओं में 90 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। कहा कि कमजोरी भू कानून के कारण बाहर के पूंजीपति हमारी जमीन खरीद रहे हैं। उत्तराखंड में बाहर से आए लोगों ने पहाड़ के पहाड़ अपने नाम कर लिए हैं। इसके लिए सरकार को सशक्त भू कानून बनाना चाहिए।

उन्होंने प्रेस के माध्यम से लोगों से 29 तारीख को आयोजित महारैली में अधिक से अधिक संख्या में शिरकत करने की अपील की थी । उन्होंने कहा कि सरकार बंगालियों को आरक्षण देने की बात कर रही है। मगर पहाड़ियों को 90 प्रतिशत आरक्षण देने को तैयार नहीं है। कहा कि बंगाली भाषा को उत्तराखंड में पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात सरकार कर रही है मगर गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा को पाठ्यक्रम में लागू नहीं कर रही है।कहा कि छठ पूजा पर तो सरकार सार्वजनिक अवकाश घोषित करती है मगर हमारे लोक पर्व ईगास पर सार्वजनिक अवकाश नहीं करती। जोकि हमारे साथ सबसे बड़ा न्याय है। कहा कि सरकार केवल बाहरी लोगों को इस राज्य में बसाने का काम कर रही है, लेकिन जो हम पहाड़ी लोग हैं उनको दरकिनार कर रही है। कहा कि अगर पहाड़ के लोग इस आंदोलन को अपना पूरा सहयोग नहीं देगें तो एक दिन सरकार पहाड़ियों को बाहरी और बाहरी को उत्तराखंड के निवासी घोषित कर देगी। उन्होंने कहा कि सरकार धीरे-धीरे पहाड़ी क्षेत्र का परिसीमन कर विधानसभा सीटें काम कर रही है और मैदानी क्षेत्रों में विधानसभा सीटें बढ़ा रही है। कहा कि यह लड़ाई हमारे अपने अधिकारों के लिए है और अपने अधिकारों के लिए लड़ना हमारा अधिकार है।
























